आदिवासी को खत्म करने का सरकार की योजना
गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों में नर्मदा डैम, कर्जन डैम, उकाई डैम, सुकी डैम, कडाणा डैम इत्यादि छोटे-मोटे डैम बनाये गए और आदिवासियों को विस्थापित कर दिया गया. अदिवासियों की पहचान, उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज एवम जल, जंगल, जमीन से अलग कर दिया. उपरोक्त कारणों से आज गुजरात के आदिवासी आर्थिक, सामाजिक, राजकीय और शैक्षणिक क्षेत्रों में पीछे है. आदिवासी क्षेत्रों में सरकार ने जो भी कानून बनाये उनका सुचारू रूप से परिपालन नहीं होता. गुजरात में आदिवासी सलाहकार समिति (Tribal Advisory Council) भी आदिवासियों के हित मे काम नहीं करती. यह समिति राजकीय पार्टियों के गुलामों की समिति है. गुजरात के गवर्नर भी राजकीय पार्टी के निर्देशों पर ही काम करते हैं तथा वो भी आदिवासियों के हित में काम नहीं करते. इन राजकीय पार्टियों ने तथा उनके लोगो ने आदिवासियों के साथ अत्याचार और शोषण ही किया है. आदिवासियों के संसाधनों को लूट कर जितने भी डैम बने उसका पूरा फायदा कम्पनियों को दे दिया गया है.
आज आदिवासी क्षेत्रों में पानी की विकट समस्या है और इस समस्या के
निवारण के लिए कोई सरकार सुनती भी नहीं है.आज नर्मदा डैम से बहुत लोग विस्थापित हो
गए हे. नर्मदा डैम के नीचे जवाहर लाल नेहरु की याद में विहार डैम बनने वाला
है.जहाँ डैम बनने वाला है वहाँ आदिवासियों का गाँव है. इस भावी योजना से 73 से
ज्यादा गाँवों को सरकार विस्थापित करने वाली है.सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति बन
रही है उससे आदिवासियो को बहुत नुकसान होने वाला है.पार, नार और तापी
नदी जोडने की योजना में डांग, वलसाड के धरमपुर एवं कपराडा के
आदिवासी गाँव विस्थापित होंगे. इस योजना से आदिवासी बेघर होने वाले है. आदिवासी
क्षेत्रो में छोटा उदेपुर, भरूच जिल्ले के वालिया, झगडिया और नर्मदा जिल्ले का
विस्तार, सुरत जिल्ले का मागरोल, झंखवाव के पूरे विस्तार में बाक्साइट, रेत और पत्थर निकलता है. इन
प्राकृतिक संसाधनों को आदिवासी क्षेत्र से सरकार और पूजीवादी लोग लूट रहे है. सरकार राशन कार्ड बनाने में भी
भेदभाव कर रही है. गरीबों को B.P.L कार्ड नही
मिलता. सबो को A.P.L का कार्ड जारी किया जा रहा
है.सरकार का मानना है की आदिवासी लोग विकसित हों गए है.तमाम राशन की दुकानों में
खुले आम लूट चल रही है. लोगों को महीने में पूरा राशन नही मिलता. आदिवासी
क्षेत्रों में कुपोषण की विकत समस्या है. कुपोषण से होने वाली बीमारी ‘सिकल सेल’ इन क्षेत्रों में आम होती
जा रही है.आज आदिवासी क्षेत्रों में एक भी अच्छा अस्पताल नही है. अकस्मात बीमारी के समय भी लोगों को शहरी क्षेत्रों में जाना पड़ता है.
आदिवासी क्षेत्रों में PPESA ACT 1996, Forest Right Act 2006 आदि कानून लागू नही किया जा रहा है. सरकार की जो भी योजना है वो आदिवासियों के
लिए मात्र एक टुकड़ा भर है. जो भी योजना है वो सरकार और पचायत के प्रमुख, सरपंच इत्यादि लोग साथ में मिलकर पूरी योजना को ही खा
जाते है. सरकार गरीबो का मेला लगाती है जो की आदिवासियों के फण्ड से चलता है.
आदिवासी को हिन्दू बनाने का काम चल रहा है. आदिवासी के कास्ट सर्टिफिकेट में
जान-बूझ कर ‘हिन्दू –भील’ लिख दिया जाता है
जबकि ‘हिन्दू’ शब्द का वर्णन भारत के सविधान में भी नही है. कुछ क्षेत्रों में तो
आदिवासियों को कास्ट सर्टिफिकेट भी नही दिया जाता. आदिवासी क्षेत्र के
स्कूलों में टॉयलेट की सुविधा नही है और आदिवासी क्षेत्र में जितने भी आश्रमशाला
तथा होस्टल हैं वहाँ भी पानी की, रहने की, भोजन की और पढने की बहुत बड़ी समस्या है.आदिवासी विधार्थियों को समय पर छात्रवृति भी नहीं
मिलती. आदिवासी क्षेत्र में फारेस्ट डिपार्टमेंट और पोलिस
तंत्रों के लोग आदिवासी को डराते और मारते हैं.
जय
आदिवासी..................जागो आदिवासी...........लड़ो आदिवासी...
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